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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-13

    

    अध्याय-4
    अगला दिन
    भाग-3

    ★★★
    
    आर्य और हिना दोनों ही किले की बाहरी दीवार के पास आ गए थे। आर्य के साथ होने वाली अजीब सी सुनने वाली चीज अभी भी जा रही थी। वह खुद को और आसपास की चीजों को धीमा होता हुआ प्रतीत कर रहा था। तभी हिना ने उसे जब छोरा और वह वर्तमान स्थिति में आया।
    
    “तुम पक्का कोई नशा नहीं करते ना। कल दोपहर को सोने के बाद सीधे रात को उठे थे, और अब यहां मैं तुम्हें पिछले कुछ टाइम से आवाज लगा रही हूं और तुमने सुना ही नहीं।”
    
    आर्य ने अपने होश संभालते हुए कहा “मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया था। इसलिए तुम्हें जवाब नहीं दे पाया।” इसके बाद वह किले की तरफ देखने लगा।
    
    किले की दीवारें काले रंग से बनी हुई थी, बर्फबारी और सीलन की वजह से दीवारें जर्जर हालत में थी। उनकी नीम जहां पर ज्यादा नवीं रहती थी वह काली होने के साथ-साथ हरे रंग की एक अजीब सी चीज से भी ग्रस्त थी। इसे सीजन की वजह से दीवारों पर लगने वाली बीमारी कहा जाता है। यह ज्यादातर दीवारों को कमजोर ही करती है वह भी जड़ से। आर्य ने अपने हाथों को आगे बढ़ाया और सलाखें पकड़ ली। सलाखें पकड़ते ही उसके शरीर में झुरझुरी सी दौड़ी।
    
    हिना बोली “हमारे आश्रम में यह किला पहले से ही था। पहले आश्रम के लोग यहां बाहर ना रहकर इस किले में रहते थे। मगर अंधेरी पंछियों को कैद करने के लिए केद खाने की जरूरत थीं। और यहां आश्रम में इससे बढ़िया कोई भी कैदखाना नहीं था। आश्रम के लोग बाहर आ गए और अंधेरी परछाइयों को जादुई मंत्रों से इसके अंदर कैद कर दिया। बस उसके बाद यह किला हमेशा हमेशा के लिए आश्रम के लोगों के लिए एक देखने वाली चीज बन गया।”
    
    “तुमने कल कहा था यह खतरनाक है.... आश्रम के जादुई मंत्रों की वजह से भी... और अंदर के शैतानी आत्माओं वजह से भी....।”
    
    “पूरी तरह से खतरनाक। आश्रम के महान आचार्य आचार्य वर्धन ने यहां एक ऐसे मंत्र का इस्तेमाल किया है जिसके बारे में पूरा आश्रम नहीं जानता। एक खतरनाक मंत्र जो सिर्फ और सिर्फ उन्हें ही आता है। उस मंत्र का कोई तोड़ नहीं है।” 
    
    आर्य ने सलाखों को कस कर पकड़ा “अचार्य वर्धन यहां के सबसे ताकतवर आचार्य में से है।”
    
    “बिल्कुल।” हिना अपने कंधे उचकाते हुए बोली “उनके जादुई मंत्रों का कोई तोड़ नहीं, फिर वह ऐसी भी चीजें जानते हैं जिनके बारे में आश्रम में कोई और नहीं जानता। हजारों अंधेरी परछाइयों से अकेले लड़ने की क्षमता रखते हैं। उम्र दराज की है और अनुभव भी काफी सारा है। इसी शजह से वह सबसे ताकतवर आचार्य है, और उनका ताकतवर हो ना स्वाभाविक भी है।”
    
    आर्य हिना की बात सुन रहा था मगर इसके बावजूद हिना की बात कटती हुई सुनाई दे रही थी। वह वापिस किले की और अपना खिंचाव महसूस करने लगा था। अचानक उसके पीछे से हवा का एक तेज झोंका आया, तेज होता इतना तेज था कि आर्य और हिना दोनों को अंदर की ओर धक्का लगा। दोनों ही गेट को खोलते दीवार के दूसरी ओर जा चुके थे। 
    
    दीवार के दूसरी ओर आते ही पीछे से आने वाली हवा और तेज हो गई। आर्य और हिना दोनों ने महसूस किया कि वह किले की ओर खींचा जा रहे हैं। हिना ने तुरंत अपनी आंखें बंद की और पूरे शरीर को नीली रोशनी से चमका लिया। इसके बाद उसने अपने ठीक सामने नीली रोशनी की दीवार बनाई और अपना एक पैर उस पर टिक आते हुए खुद को अंदर जाने से रोक लिया। 
    
    मगर आर्य ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता था। वहीं हिना से दूर था, जब तक हिना दीवार बनाकर खुद को सुरक्षित करती तब तक वह और आगे जा चुका था। 
    
    हिना ने आर्य की तरफ देखा तो वह चिल्लाई “अपना बचाव करो आर्य...।”
    
    आर्य ने यह सुना लेकिन इसके बावजूद उस पर ऐसा नशा सा हो गया था कि सुनने के बाद भी उसने कुछ नहीं किया। बाहर से आने वाले हवा के धक्के उसे किले की और पास करते जा रहे थे। अभी तक वह खड़ा हुआ था, और गिरते पड़ते किले की ओर जा रहा था। मगर अचानक वह नीचे गिर गया। नीचे गिरते ही एक बार के लिए उसे सुध सी आई। उसने महसूस किया कि वह किसी बड़े ही खतरे में फसने जा रहा है। उसने हिना को भी कहते हुए सुना जो उसे अपना बचाव करने का कह रही थी। 
    
    आर्य ने अपनी आंखों को बंद किया और सर को झटका देकर पूरी तरह से होश में आया। अपने होश संभालते ही उसने अपने दाएं हाथ की उंगलियों को जोर से जमीन में घुसा दिया। सतह बर्फीली थी तो उसका हाथ काफी गहराई तक चला गया। मगर अब धीरे-धीरे और तेज होती जा रही थी। अपना हाथ जमीन में गुढोने होने की वजह से आर्य किले की ओर जाने से तो रुक गया था मगर उस पर पड़ने वाला दवाब अभी भी जारी था। वह दवाब पल प्रतिपल बीतने के साथ बढ़ता ही जा रहा था। 
    
    तकरीबन कुछ समय और बीतने के बाद आर्य ने महसूस किया कि उसकी पकड़ छूटने जा रही है। उसका हाथ जमीन से निकलने को तैयार था। उसे ऐसा लग रहा था कि आज वह सिर्फ मुसीबत में ही नहीं फंस रहा, बल की मौत के मुंह में ही जा रहा है। उसे अपने बचने की कोई भी उम्मीद दिखाई नहीं दे रही थी। वह पूरी तरह से अपनी उम्मीद हार चुका था, लेकिन तभी उसे एक सफेद चमकती हुई रोशनी दिखाई दी।
    
    वो सफेद चमकती हुई रोशनी लगातार उसकी ओर आ रही थी। रोशनी और करीब आए तो पता चला आश्रम के आचार्य, आचार्य वर्धन अपने साथ कुछ आचार्यों के साथ उसकी ओर ही आ रहे हैं। वह सफेद रोशनी जो उसे दिखाई दे रही थी वह अचार्य वर्धन के हाथ में मौजूद एक डंडे के ऊपरी सिरे से निकल रही थी।
    
    आचार्य वर्धन पास आए तो उन्होंने अपने डंडे को सामने के लिए की और कर दिया। ऐसा करते ही सफेद रोशनी और ज्यादा बढ़ने लगी। रोशनी के बढ़ते ही चलने वाले तेज हवाओं की गति कम होने लगी। धीरे धीरे बाकी की चीजें भी शांत हो रही थी। किले के सामने पैदा हुए हालात अब खत्म हो रहे थे। 
    
    सब कुछ जबकि से सामान्य हुआ तो हिना ने नीली रोशनी से चमक रहे अपने शरीर को वापस पहले जैसा कर लिया। वही कुछ अचार्य तेजी से आगे की तरफ बढ़े और उसे उठा कर जल्दी से किले से दूर की ओर जाने लगे। हिना भी आर्य के साथ-साथ उसके पीछे-पीछे किले से दूर चल पड़ी। सभी के किले से दूर जाने के बाद वहां सिर्फ और सिर्फ आचार्य वर्धन खड़े थे। वह किले की तरफ से बड़े ही गौर से देख रहे थे। उनकी छड अभी भी किले की ओर थी। वह किले को ऐसे देख रहे थे जैसे मानो उनमें दीवारों के उस पार भी देखने की क्षमता थी। 
    
    काफी देर तक किले को देखने के बाद वह बोले “यह आज पहली बार हुआ है। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। कहीं...” उनके शब्द अपने जगह पर रुक गए। कुछ देर के लिए वह कुछ नहीं बोले। इसके बाद उनके मुंह से निकला “कहीं... कब्र में दफन राज बाहर ना आ जाए।”
    
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1 Comments

Arshi khan

19-Dec-2021 11:28 PM

KBR me dafan raaj... Jb khulenge tb kuch bhyank hi hoga

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